भौतिकवाद के झुलसे हुए रेगिस्तान में , ' आत्मान्वेषण की यात्रा ' उच्चतर आध्यात्मिक जागरूकता के मरूद्यान का निश्चित रास्ता दिखलाता है । इन चित्ताकर्षक निबन्धों , प्रवचनों और अनौपचारिक वार्तालापों में , श्रील प्रभुपाद , जो बीसवीं शताब्दी के महानतम तत्त्वज्ञानियों में से एक हैं , प्रकट करते हैं कि , वैदिक साहित्य व उसकी मन्त्रध्यान की पद्धतियाँ हमें किस प्रकार , सभी व्यक्तिगत व सामाजिक संघर्षों को हल करके शाश्वत शान्ति व सुख की स्थिती तक आने में सहायता कर सकती हैं ।
Name | आत्मा का प्रवास |
Publisher | Bhaktivedanta Book Trust |
Publication Year | 1990 |
Binding | Paperback |
Pages | 302 |
Weight | 270 gms |
ISBN | 9789382716396 |