श्रील प्रभुपाद जिनका अनुमोदन विद्वानों द्वारा वैदिक आध्यात्मिक परम्परा के सब से महान प्रतिनिधि के रूप में किया गया है , उनके द्वारा किये गये वार्तालापों की श्रेणी यहाँ प्रस्तुत है । यह ग्रन्थ चेतना का स्वभाव , ध्यान , कर्म , मृत्यु तथा पुनर्जन्म इत्यादि विषयों की भलीभाँति जाँच करता है । श्रील प्रभुपाद मन को शुद्ध करने तथा चेतना को उन्नत बनाने के लिए ऐसी सरल विधि बताते हैं , जो न केवल पाठकों को आन्तरिक शान्ति का आश्वासन देती है , किन्तु इसमें आधुनिक समाज के दैनिक अस्तव्यस्त जीवन में निहित समस्याओं का भी समाधान दिया गया है I
Name | योगपथ |
Publisher | Bhaktivedanta Book Trust |
Publication Year | 1996 |
Binding | Paperback |
Pages | 208 |
Weight | 200 gms |
ISBN | 9789382716525 |